नाबालिग बच्चों के प्रति यौन उत्पीड़न, मोलेस्टेशन जैसे मामले दिन ब दिन बढ़ते जा रहे हैं। इस घिनौनी हरकत का शिकार सिर्फ लड़किया ही नहीं लड़के भी हो रहे हैं। इस तरह की घटनाएं फिल्म जगत में भी होती हैं, लेकिन ऐसे मामले ज्यादातर बदनामी के डर, पैसों के दबाव और इंडस्ट्री में टिके रहने की लालसा की वजह से बाहर नहीं आ पाते हैं। और, लोग मायानगरी की जगमगाती दुनिया के पिंजरे में  फंसकर रह जाते हैं। वेब सीरीज ‘कसफ’ फिल्मी दुनिया के ऐसे ही  घिनौने चेहरे का पर्दाफाश करती है।  वेब सीरीज ‘कसफ’ को समझने से पहले यह समझ लेते हैं कि कसफ का मतलब क्या होता है? दरअसल, कसफ का मतलब पिंजरा होता है। फिल्म जगत की जगमगाती दुनिया कसफ में जो एक बार फंस जाता है, उसका फिर वहां से निकलना बहुत मुश्किल होता है। यह सीरीज ब्रिटिश सीरीज ‘डार्क मनी’ पर आधारित  है। राघव वशिष्ठ और सीमा वशिष्ठ मध्यम वर्गीय परिवार के कपल है। उनके बेटे सनी वशिष्ठ को इंडस्ट्री एक सुपरस्टार विक्रम बजाज की फिल्म में काम करने का बहुत बड़ा मौका मिलता है। शूटिंग के दौरान विक्रम बजाज के द्वारा सनी वशिष्ठ का यौन शोषण किया जाता है। सनी इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर पाता है और अपने माता -पिता को सारी सच्चाई बता देता है। यहां से कहानी आगे बढ़ती है। छह एपिसोड के इस सीरीज में अपने बच्चे को इंसाफ देने की लड़ाई में माता -पिता के इरादो का डगमगाना, उनका कंफ्यूजन, नैतिक कमजोरी जैसे तमाम पड़ाव आते हैं। आमतौर पर देखा गया है कि मध्यमवर्गीय परिवार की सबसे बड़ी कमजोरी पैसा होता है। अपने गुनाहों पर पर्दा डालने के लिए कैसे बड़े घर के लोग पैसा देकर उनका मुख बंद करवाते हैं। लेकिन जब गरीब आदमी का जमीर जागता है, तो बड़े से बड़े पैसे वालों की बोलती बंद हो जाती है। एक तरह मध्यमवर्गीय परिवार के अपने अधूरे सपने को पूरा करने की ललक और दूसरी तरफ  बेटे को न्याय दिलाने के पीछे की व्यथा को निर्देशक साहिल संघा ने बहुत ही खूबसूरती से पेश किया है। लेकिन सीरीज की कहानी जैसे ही अपनी पकड़ बनाती है। राघव वशिष्ठ की पूर्व पत्नी मेघना की कहानी में एंट्री मूल कथानक को भटका देती है। एक तरफ राघव वशिष्ठ का अपने बेटे को लेकर मन में चल रहा उथल पुथल दिखाया गया है। तो, वहीं दूसरी तरह राघव का  पूर्व पत्नी से मिलना और उसके करीब जाने की कोशिश मूल कथानक को भटका देता है। हालांकि इससे पीछे निर्देशक की अपनी एक अलग सोच रही हैं उसे जस्टिफाई करने की कोशिश भी है, लेकिन निर्देशक का वह तर्क, तर्कपूर्ण नहीं लगता है। कहीं न कहीं इससे मूल कथानक की संवेदनशीलता अपना असर खो देती है। माता -पिता की भूमिका में शरमन जोशी और मोना सिंह का किरदार बहुत ही प्रभावशाली है। काफी लंबे समय के बाद इन दोनों को अच्छा किरदार निभाने का मौका मिला और उसे सौ फीसदी स्क्रीन पर उतारने की कोशिश की है। सनी वशिष्ठ की भूमिका में मिखाइल गांधी ने एक सुपरस्टार की कुचेष्टा का शिकार हुए बच्चे की भूमिका भावुक कर देती है। सुपर स्टार विक्रम बजाज की भूमिका में विवान भटेना का अच्छा प्रयास रहा है। मोना बसु ने राघव वशिष्ठ की दूसरी पत्नी मेघना का किरदार निभाया है। अच्छी एक्टिंग होने के बावजूद उनका किरदार बिना सिर पैर वाला लगता है।

By SANOOJ

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