गुरुब्रह्मा, गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर: गुरुर्साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नम:… यह मंत्र बचपन में हम सभी सुनते और पढ़ते आए हैं. हिंदू धर्म के पुराणों में गुरु को भगवान से ऊंचा स्थान का वर्णन मिलता है. क्योंकि वो गुरु ही है जो भगवान और ब्रह्मांड का ज्ञान देता है. इस वर्ष तीन जुलाई को गुरु पूर्णिमा है. यह पर्व वेद व्यास के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है. संसार के सबसे पहले गुरु वेद व्यास हैं जिन्होंने वेदों, पुराणों के माध्यम से सनातन धर्म से जुड़ी जानकारियां हम तक पहुंचा कर ज्ञान के प्रकाश से अज्ञानता को दूर किया है. गुरु पूर्णिमा के दिन महर्षि वेद व्यास के पूजन के साथ-साथ अपने गुरु की भी पूजा करनी चाहिए. इनके आशीर्वाद से व्यक्ति को सफलता मिलती है. उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के पंडित उदय शंकर भट्ट ने गुरु पूर्णिमा के बारे में जानकारी देते हुए कहा है कि यह आषाढ़ माह की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है. इस दिन वेद व्यास का जन्म हुआ था इसलिए इसे व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है. उन्होंने कहा कि गुरु को हमने ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूप में माना है. गुरु शब्द, दो शब्दों गु+रु से मिला है. इसमें गु का अर्थ अंधकार और रु का अर्थ है हनन करना. यानी हमारे मन, मस्तिष्क में अज्ञानता और अंधकार को दूर कर ज्ञान के प्रकाश को पैदा करने वाले को गुरु कहा जाता है. उन्होंने बताया कि अगर गुरु का आशीर्वाद मिल जाता है तो शिष्य का जीवन सफल हो जाता है. इसलिए ही गुरु को भगवान के समान माना गया है. प्राचीन समय का जिक्र करते हुए पंडित उदय शंकर भट्ट ने बताया कि प्राचीन काल में गुरु शिष्य का परीक्षण करते थे और शिष्य भी गुरु का परीक्षण करता था. उसके बाद ही गुरु शिष्य को चुनता था. गुरु की शरण में आने के लिए पहले शिष्य को परीक्षा देनी होती थी. प्राचीनकाल से हम एकलव्य की कहानी सुनते आए हैं कि उन्होंने किस तरह अपने गुरु द्रोणाचार्य के लिए अपना अंगूठा काट लिया था. उन्होंने बताया कि गुरु पूर्णिमा के दिन अपने गुरु की पूजा करें. एक थाली में साफ पानी लेकर अपने गुरु के पैर धोएं और उस पानी को अपने मस्तक पर लगाएं. सच्चे मन से गुरु का पूजन करने वाले को आशीर्वाद प्राप्त होगा.